चेसार दे बुस का जीवन
तेरह में सातवें पुत्र, चेसार दे बुस, का जन्म आवियों के नजदीक कावाइयों में 3 फरवरी 1544 को “रविवार के दिन सुबह 9 बजे” हुआ था।
वे “स्वाभाविक रूप से” ख्रीस्तीय परिवार और सामाजिक परिवेश में पले-बढ़े, किशोरावस्था में संकट के दौर से गुजरे, अपनी युवावस्था पर गहरा चिन्ह छोड़ा और उच्छृंखल मित्रता और आसान मनोरंजन के जरिए अपने जीवन को लापरवाह बना डाला।
पाप के मार्ग को त्यागने की प्रबल पुकार और एक प्रामाणिक ख्रीस्तीय विश्वास के अभ्यास पर वापसी की प्रक्रिया उन विनम्र लोगों के माध्यम से गुज़री, जिन्हें ईश्वर ने अपने रास्ते में रखा था जैसे, अन्तोनिएत्ता रेवाईयाद और लुईस गुयोत। दे बुस परिवार में ये दोनों भले चिर परिचित व्यक्ति प्रार्थना और पश्चाताप के द्वारा ईश्वर से इनका मन-परिवर्तन के लिए चमत्कार का निवेदन करते थे।
एक शाम, चेसार अपने दोस्तों के साथ बाहर निकलने के पहले, अन्तोनिएत्ता के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर संतो की जीवनी से कुछ पन्ने पढ़ने के बाद व्याकुल हो गए। उन्होंने अपनी भावनाओं को छिपाने की कोशिश की लेकिन घर से बाहर निकले के बाद उन्हें ख्रीस्त की आवाज सुनाई पड़ी जो उनसे कह रही थी: “क्या तुम मुझे फिर से क्रूस पर चढ़ाने जा रहे हो?” वे तुरंत वापस लौटे और अन्तोनिएत्ता के साथ प्रार्थना में रात बिताई। महीनों बाद, हालाँकि पूर्ण मन-परिवर्तन की इच्छा से आकर्षित हो चुके थे, इस बार आवियों में नृत्य करने का एक निमंत्रण स्वीकार कर लिया; शीघ्र ही उब कर रात्रि के समय शहर की सड़कों पर भटकना शुरू कर दिया।
वह 1575 का पवित्र वर्ष था। चेसार ने अपनी जयंती मनाई और जेसुइट फ़ादर पेके के मार्गदर्शन में प्रभु के पास लौट आया; उन्होंने अपना जीवन बदल डाला, अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी जो किशोरावस्था में बाधित हो गया था और पुरोहिताई की ओर अग्रसर हो चला। वे 1582 में पुरोहित अभिषिक्त होकर, “स्वर्ग के मार्ग पर मौजूद सत्य” के अति उत्साही धर्मशिक्षक बन गए और इन सत्यों को “भंजित रोटी” के सदृश अपने लोगों को एक सरल, तत्काल, प्रतीकात्मक और बोधगम्य शैली के साथ प्रदान किया।
वे कावाइयों की पहाड़ी पर स्थित संत जेम्स आश्रम के एकांतस्थान पर, लंबी प्रार्थना में और ट्रेंट विश्व कौंसिल का फल “पल्ली पुरोहितों की धर्मशिक्षा” के अध्ययन में डूब गए। वहाँ से वे प्रोवांस के निकटवर्ती गाँव और शहर जाते थे, फिर अन्त में आवियों में बस गए।
मिलान के महाधर्माध्यक्ष संत चार्ल्स बोरोमेयो की धर्मशिक्षा से प्रभावित होकर, जिसके कार्य के विषय में वे परोक्ष रूप से जानते थे, कुछ पुरोहितों का एक समूह एकत्रित कर सामुदायिक जीवन शैली की रचना की तथा “ख्रीस्तीय धर्मसिद्धान्त का अभ्यास करने के” कष्ट और खुशी साझा की।
वर्षों तक फलदायी कैटेकेटिकल एपोस्टोलेट का कार्य चला, लेकिन उनके साथ कुछ शारीरिक और मानसिक कष्ट की भी कमी नहीं रही। उनके कुछ प्रारम्भिक साथी भी छोड़ चुके थे तथा वे धीरे-धीरे दृष्टिहीन होते चले जा रहे थे, फिर जीवन के अन्तिम वर्षों में पूर्ण रूप से हो गए।
क्रूस पर येसु की नग्नावस्था की भाँति, उनकी मृत्यु पास्का के दिन 15 अप्रैल 1607 को आवियों के सेंट जॉन द ओल्ड घर में हो गई। उनका अन्त हो गया परन्तु हमेशा के लिए नहीं। उनका अन्त खबरों के लिए हुआ परन्तु कलीसिया के इतिहास के लिए नहीं जो पवित्र आत्मा के निर्देशन से आगे बढ़ता है।
पोप पौलुस षष्ठम् ने 1975 ई. के पवित्र वर्ष के अवसर पर 27 अप्रैल को उनकी धर्मशिक्षा की शैली की मौलिकता से प्रभावित होकर फादर चेसार को कलीसिया में धर्मशिक्षकों के लिए एक आदर्श के रूप में पेश करते हुए धन्य घोषित किया।
लोगों के जीवन में सुसमाचार लाने की निरंतर प्रतिबद्धता को, उनकी ही एक प्रसिद्ध अभिव्यक्ति के द्वारा संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है: “आवश्यक है कि सब कुछ हमें धर्मशिक्षा की शिक्षा दे, हमें जीवन्त धर्मशिक्षा बनना है“।