धन्य चेसार दे बुस के संतघोषण की प्रक्रिया
फादर चेसार का निधन 15 अप्रैल 1607 को फ्रांस के आवियों शहर में हुआ। जैसे ही यह खबर फैली, सभी ने दोहराया: “एक संत की मृत्यु हो गई है!”। समारोही अंतिम संस्कार के बाद, फादर चेसार को कॉन्ग्रिगेशन की कब्र में दफनाया गया, लेकिन विश्वासियों के द्वारा जारी तीर्थयात्रा और उनके मध्यस्थ से मिली चंगाई की प्रसिद्धि के कारण डॉक्ट्रिन फादर्स ने आवियों के आर्चबिशप महामान्यपर बोर्दिनी से बात की जिन्होंने फादर चेसार को सेंट जॉन द ओल्ड के चर्च में दफन करने की सहमति दे दी। शरीर की पहचान की जाँच की गई, जिसे नमी जगह पर दफन किए जाने के एक साल बाद भी अक्षुण्ण पाया गया। इस प्रकार फादर चेसार को पूजा-सामग्री कक्ष (सैक्रिस्टी) के एक ऊंचे स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया ताकि कोई भी आसानी से पहुंच सके और प्रार्थना कर सके। उन्हें सैक्रिस्टी में करीब छ: वर्ष तक रखा गया जबतक कि गिरजाघर का एक प्रार्थनालय में भूमिगत नहीं कर दिया गया, जहाँ 1817 तक रहे। 1623 में, आवियों के नए आर्चबिशप मान्यवर दोल्चे ने चैपल में ही एक कक्ष का निर्माण कराया जहाँ फादर चेसार की मृत्यु हुई थी। आवियों नगरपालिका उसी वर्ष 15 अप्रैल को उनकी मृत्यु की वर्षगांठ पर एक मन्नत का दीपदान अर्पित किया।
1615 में ऑक्सियोरिताते ओर्दिनारियाअर्थात सन्तता की ख्याति की जानकारी एकत्र करने की प्रक्रिया आवियों में प्रारम्भ हुई जो 1620 में समाप्त हुई।
वर्षों-वर्षों का अध्ययन और गहन विश्लेषण के बाद, 1740 से 1758 तक पोप रहे बेनेदिक्त चौदहवें के पास फादर चेसार को धन्य घोषित करने के कई अनुरोध भेजे गए। कावाइयों के बिशप लिखते हैं: «फादर चेसार दे बुस की सन्तता की प्रसिद्धि अभी भी जीवित है और दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है»। लेकिन, 1740 के आसपास, रोम में खबर फैल गई कि फ्रांस के कई डॉक्ट्रिन पुरोहितों ने जनसेन्जिम के अंग बन गए हैं। संस्थापक के धन्यघोषण की चल रही प्रक्रिया स्थगित कर दी गई। रोम में रह रहे पोस्टुलेटर फादर वैलेन्टिन तुरंत फ्रांस गए और सभी सदनों का दौरा किया। 1744 में बुकेर में जनरल चैप्टर का आयोजन किया गया, जिसमें जनसेन्जिम के संभावित अनुयायियों के खिलाफ गंभीर कदम उठाए गए। फादर वैलेन्टिन ने रोम लौटकर जनरल चैप्टर द्वारा स्वीकृत दस्तावेजों को पोप को सौंप दिया। बेनेडिक्ट चौदहवें ने नए सुपीरियर जनरल फादर फ्रांसेस्को मजेंक को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने जनरल चैप्टर में लिए गए निर्णयों के प्रति उन्हें बधाई दी। पुन: धन्यघोषण की प्रक्रिया शुरू की गई और 28 मार्च 1747 को कार्डिनल्स का एक प्लेनरी सभा का आयोजन किया गया। कुछ दिन पहले, प्रमुख समन्वयक कार्डिनल अक्कोराम्बोनी की मृत्यु हो जाने पर स्वयं पोप ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। मत सर्वसम्मति से पारित हुआ।
फादर वैलेन्टिन ने कावाइयों के रेक्टर को लिखे एक पत्र में सारा किस्सा का बखान किया है: «… आखिरकार, सौ वर्षों से अधिक समय के बाद, हजारों असफल प्रयास, इतनी सारी बाधाओं और बेकार खर्चों के बाद, हमें संभवत: सबसे अधिक सम्मानजनक और अनुकूल (धर्मविधि का) सम्मेलन मिल पाया है। पोप ने, दयालुता से परिपूर्ण भाव के साथ, इस सम्मेलन की अध्यक्षता करना चाहा और यही नहीं, उन्होंने और भी अधिक किया जैसे कि व्यक्तिगत रूप से समन्यवक का कार्य करने का निश्चय किया। उन्होंने इतनी वाक्पटुता के साथ एक घंटे से अधिक समय तक बात की, कि इक्कीस कार्डिनल्स के सभी वोट हमारे पक्ष में आ गए। प्रक्रिया की सुनवाई 24 मार्च के प्रभु-संदेश पर्व की पूर्व संध्या को की जानी थी लेकिन 13 घंटे से भी कम समय में तीन कार्डिनलों की मौत के कारण 22, 23, 24 को उनके अंतिम संस्कार की तिथि तय हो गई। संत पिता ने, जिन्हें मैंने पहले ही बताया था कि एक-एक दिन मुझे एक महीने से कम नहीं लग रहे हैं, अभूतपूर्व दया और संवेदना के साथ, इस सप्ताह या ईस्टर सप्ताह में ऐसी सभाओं को कभी न करने के साधारण नियमों के खिलाफ, 28 मार्च को सभा बुलाने का निर्णय लिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सभी कार्डिनल्स के सामने मुझे आश्वासन देते हुए बधाई देना चाहा कि जितनी जल्दी हो सके वह मुझे एक डिक्री (आज्ञप्ति) जारी करेंगे जो अत्यधिक प्रतिष्ठित और अनुकूल होगा»।
6 अप्रैल 1747 को धन्यघोषण की प्रक्रिया शुरू करने की डिक्री पर हस्ताक्षर किए गए। फादर वैलेन्टिन तुरंत समुद्र के रास्ते आवियों के लिए निकल पड़े। उनका जहाज अल्जीयर्स द्वारा पीछा किया जा रहा था, जिसे सौभाग्यवश एक अंग्रेजी जहाज द्वारा खदेड़ दिया गया। यात्रा के दौरान फादर वैलेन्टिन को बुखार हो गया और उसे मर्सेई का एक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। 4 अक्टूबर को वे फादर चेसार के शरीर की पहचान की की जाँच में आवियों के आर्चबिशप, विकर और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों के सक्षम मौजूद हो सके। 1748 में “सूपेर नोन कुल्तु” और “सूपेर स्क्रिप्तिस” की प्रक्रियाओं को पूरा किया गया। आवियों में 20 हस्तलिखित नोटबुक, 5 खंडों में मुद्रित “परिवारों को निर्देश” और मेसों में जिल्दसाजी की गई दो पांडुलिपियाँ पाई गईं।
इन प्रक्रियाओं की समाप्ति बाद, 1748 के अंत में फादर वैलेन्टिन रोम लौट आए। फिर “सामान्य रूप से” सन्तता की ख्याति (1749-1750) और “विशेष रूप से” सन्तता की ख्याति (1751-1754) की जाँच की एपोस्टोलिक प्रक्रियाएं पूरी की गईं जिन्हें कानूनी वैधता की स्वीकृति की आज्ञप्ति मई 1756
1756 में मिलीं। प्रक्रिया अनुकूल रूप से आगे बढ़ती प्रतीत हो रही थी लेकिन 1789 में पेरिस में फ्रांसीसी क्रांति शुरू हो गई, जिसके कारण फ्रांस में क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स धर्मसंघ का नाश हो गया और धन्यघोषण की प्रक्रिया भी बेहतर समय की प्रतिक्षा में लंबित पड़ गया।
1817 में फ्रांसीसी क्रांति की समाप्ति और 1815 में वाटरलू में नेपोलियन की हार के बाद, इटली में कॉन्ग्रिगेशन के पुनर्निर्माण का कार्य फा॰ फिलिप्पो ब्लांकार्डी, फा॰ कार्लो लुइजी वस्सिया, फा॰ पिएत्रो सिल्वेस्त्रो ग्लाउदा, फा॰ जुलियो बेविलाक्वा-वेल्लेत्ती के द्वारा किया गया। फादर वस्सिया को पोस्टुलेटर नामित किया गया तथा कलीसियाई वकील मान्यवर अमीची के द्वारा फादर चेसार की प्रक्रिया पुन: आरंभ की गई। पोप पियूष सप्तम् ने 8 दिसंबर 1821 को वीरता की श्रेणी से सदगुणों के अभ्यास किए जाने की डिक्री जारी की।
उसी दौरान, आवियों शहर के विकास के तहत नये मास्टर प्लान के अनुसार सेंट जॉन द ओल्ड चर्च और सदन दोनों को ध्वस्त कर दिया गया। हमेशा आवियों के सेंट पीटर्स चर्च में फादर चेसार के शरीर को स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन इटली के डॉक्ट्रिन फादर्स उक्त शरीर को इटली में, सटीक रूप से रोम के सांता मरिया मोन्तीचेल्ली चर्च में स्थानांतरित करने का निवेदन किया। आवियों के आर्चबिशप मान्यवर दूपों, जो कि डॉक्ट्रिन फादर्स के एक भूतपूर्व छात्र, इसे खुशी-खुशी स्थानांतरित करने के प्रक्रम में जुट गए। इस प्रकार 1836 में डॉक्ट्रिन फादर्स अपने संस्थापक को इटली ले आए। इस अवसर पर कब्र पर निम्नलिखित शिलालेख (लैटिन में) लिखा गया: “क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स धर्मसंघ के संस्थापक, ईश-सेवक चेसार दे बुस का शरीर को, जो 63 वर्ष तक जीवित रहे और जिनका निधन फ्रांस के आवियों में 15 अप्रैल 1607 को हो गया, पोप ग्रेगोरी सोलहवें की पदावधि में रोम लाया गया तथा 8 जुलाई 1837 को यहाँ पर रख दिया गया”। 1924 में दुबारा दफन के दौरान एक और नया लैटिन शिलालेख पढ़ा जा सकता है, जो आज तक बना हुआ है: “क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन के सेक्यूलर प्रीस्ट्स के संस्थापक, श्रद्धेय चेसार दे बुस के पवित्र अवशेष जिन्हें यहाँ प्रेरितिक अधिकार के तहत 15 नवंबर 1924 को रखा गया”।
27 अप्रैल 1975: सेंट पौल षष्ठम् ने फादर चेसार को धन्य घोषित किया
I due miracoli avvenuti per intercessione di p. कॉन्ग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स के द्वारा फादर चेसार के माध्यम से मिली पूर्ण तथा चिरस्थाई और त्वरित चंगाई के दो चमत्कारों को मान्यता मिली है, पहला, कार्डियो-रेस्पिरेटरी की अपर्याप्तता के साथ एक्यूट पल्मोनरी सिंड्रोम से पीड़ित पास्क्वाले सविनो, तथा दूसरा, अचानक प्रकट होता और तेजी से बढ़ता थायराइड कैंसर से पीड़ित मारिया बियान्को की चंगाई। ये दोनों चमत्कार क्रमश: इटली के आस्कोली सत्रियानो और सैन दामियानो दी आस्ती में हुए हैं।
धन्यघोषण की तैयारी के पहले, जनरल हाउस में 10 से 15 जुलाई 1974 तक, एक चिकित्सक द्वारा कॉन्ग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स के प्रतिनिधि, सुपीरियर जनरल और कुछ सहधर्मबन्धुओं की उपस्थिति में फादर चेसार के शरीर के अवशेषों की प्रामाणिकता की कानूनी जाँच की गई। फ्रांस में 1608 तथा 1836, और रोम में 1924 के बाद यह चौथी कानूनी जाँच थी।
27 अप्रैल 1975 को सेंट पीटर्स बसिलिका में फादर चेसार को धन्य घोषित किया गया।
2021: धन्य चेसार दे बुस को पोप फ्रांसिस द्वारा संत घोषित किया गया
कॉन्ग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स ने धन्य चेसार दे बुस की मध्यस्थता से प्राप्त अनेक कृपाओं में से एक, सलेर्नो की एक युवती को 2016 में मिली चंगाई के मामले की जाँच की, जो कि “पिछले इंट्रापेरेन्काइमल सेरेब्रल हैमरेज के साथ-साथ एसिनेटोबैक्टर बौमेनियाई एमडीआर के कारण गंभीर मैनिंजाइटिस” से पीडि़त थी। जब युवती 17 अक्टूबर 2016 को हुए एक मस्तिष्क संबंधी विस्तृत रक्तस्राव के कारण गंभीर चिकित्सकीय स्थिति में थी, कि उसपर 9 नवंबर को अचानक बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस का आघात हुआ, जिससे चिकित्सकीय तस्वीर और भी जटिल हो गई, जबकि वह पहले से ही गम्भीरावस्था में थी। केवल तीन दिनों के बाद स्वास्थ्य की स्थिति में काफी सुधार हुआ और 30 नवंबर को युवती को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई जो कि मेनिन्जाइटिस से पूरी तरह से ठीक हो गई थी। क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स द्वारा संचालित सेंट मेरी ऑफ बरबुती पल्ली चर्च में युवती को धन्य चेसार की मध्यस्थता की प्रार्थना में सौंपने की पहल की गई। दोस्तों द्वारा सूचित किए जाने के बाद, हमारे सहधर्मसंघियों ने तुरंत ही धन्य चेसार का पवित्र पुरावशेष और कृपा पाने की प्रार्थना के साथ की तस्वीर को परिवार, रिश्तेदारों और अन्य परिचितों के पास भिजवा दिया गया। धन्य चेसार के मध्यस्थ निवेदन की दैनिक प्रार्थनाएँ चढ़ाई जाने लगीं ताकि वे युवती को चंगाई का वरदान दिला सके। अनेकों जागरण प्रार्थना का आयोजन किया गया, जिनमें कई पल्लीवासी शामिल हुए। रिश्तेदारों और मित्रों ने अस्पताल में इंटेंसिव केयर यूनिट के सामने वाले कमरे में प्रार्थना की।
26 मई 2020 को संत पिता फ्रांसिस ने कॉन्ग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स को चमत्कार पर डिक्री जारी करने का अधिकार दिया।