शहीद धन्य डॉक्ट्रिन फादर्स
1789 से पहले फ़्रांस में डॉक्ट्रिन फादर्सके 64 घर, बोर्डिंग स्कूलल या सेमिनार थे,जिनमें से सिर्फ आवियों प्रान्त में 29 थे। फ्रांसीसी क्रांति ने फ्रांस में डॉक्ट्रिन फादर्स की उपस्थिति का अंत कर दिया। कई प्रयासों के बाद, उनकी स्थायी उपस्थिति को फिर से देखने के लिए 1966 तक इंतज़ार करना पड़ा।
1792 के सितंबर महीने में शहीद हुए दो डॉक्ट्रिन फादर्स क्ला,उदियुस बुशो और यूस्तस फेलिक्स को 1926 में पोप ग्यारहवें ने धन्य घोषित किया। इन शहीदों साथ कॉन्ग्रिगेशन के सहायक जनरल फादर जोसेफ रउल्स्थ का नाम भी जुड़ता है जिनका जन्म ग्रावेजों में हुआ था और 1794 में पेरिस में उनका सर गिलोटिन (कर्तन-यंत्र) से काट दिया गया था, और जिनके धन्यघोषण की प्रक्रिया चल रही है। फादर चेसार के ये योग्य शिष्य,अर्थात तीन डॉक्ट्रिन पुरोहितों ने, जो पेरिस के एक ही समुदाय से संबंधित थे, येसु मसीह, कलीसिया और धर्मसंघ के प्रति निष्ठा के साथ अपना जीवन अर्पित करते हुए “जीवंत धर्मशिक्षा” बन गए।
धन्य क्लाउदियुस बुशो और यूस्तस फेलिक्स
11676 ई. में कॉन्ग्रिगेशन का जेनेरलेट (मुख्यालय) आवियों केसेंट जॉन द ओल्ड सदन से पेरिस के सेंट चार्ल्स बोरोमियो में स्थानांतरित कर दिया गया जिसका अस्तित्वर उस तारीख से लेकर फ्रांसीसी क्रांति तक अंतिम सदन तथा कॉन्ग्रिगेशन का अंतिम मुख्यालयके रूप में रहा। जब क्रांति छिड़ गई, कम्युनिटी के सुपीरियर फादर क्लाउदियुस बुशो और बर्सर यूस्तस फेलिक्स अधिकांश सहभाइयों को बचाने में कामयाब रहे। क्रांतिकारियों के पहुंचने पर, “सिविल कॉन्स्टिच्यूशन ऑफ़ क्लर्जी” के शपथ पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले सभी लोग गिरफ्तार कर लिए गए, निर्वासित कर दिए गए और मार डाले गए। इन दो फादर्स के साथ भी यही हुआ, इन्हें सेंट फ़र्मिनो का सेमिनरी ले जाया गया, जिसे उस दौरान जेल में तब्दील कर दिया गया था। 1 और 2 सितम्बर की रात हुए नरसंहार से बचने वाला एक प्रत्यक्षदर्शी, सलामोन का मठाधीश हमें बताता है: जो कैदी पहले से ही इस मठ में थे, उन्हें खबर मिल गई थी कि कॉन्वेंट ऑफ द कारमेन में अन्यम कैदियों को मार दिया गया है। यह समाचार सुनकर सभी कैदी संत जॉन द ओल्ड के मठाधीश के चरणों तले गिर पड़े, उनसे अर्तिकुलो मोर्तिस की दया के तहत पापक्षमा की याचना की। वह संत व्यक्ति एक क्षण मौन प्रार्थना करने के बाद, हमें ‘कोंफितेयोर’, विश्वास की विनती, पछतावे की विनती और ईश्वर के प्रेम की विनती दुहराने का आग्रह करने के बाद बड़ी भक्ति के साथ पापक्षमा प्रदान किया। मठाधीश ने हमसे कहा: “हम अपने आप को यंत्रणा की अवस्था के बीमार मान सकते हैं, लेकिन ईश्वर की दया के पात्र होने के लिए विवेक और पूर्ण बोध को ध्याकन में रखकर हमें कुछ भी आशा नहीं छोड़ना चाहिए। मैं पीड़ितों के लिए प्रार्थना करूंगा जिसमें आप सब मेरे साथ जुड़ें ताकि ईश्वर हम पर दया करे”। स्तुति-विनती शुरू होती है, जिसका हम सभी ने उत्साह के साथ जवाब दिया। एक ऐसी स्वर जिसके साथ उस योग्य पुरोहित ने प्रारम्भिक प्रार्थना का उच्चारण किया: “हे आत्मा , तुम अब सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर के नाम पर इस दुनिया से प्रस्थान कर…” हम सब द्रवित हो उठे और लगभग रो पड़े। आगे सब कुछ भयानक नरसंहार के लिए तैयार रखा गया था;अगली प्राणघातक बारी हमारी थी। वे हमारे लिए रात का भोजन लाते हैं;दो बज चुके थे;तोप का दहाड़ता अलार्म सुनाई देता है… हम में से एक बेचैन, उत्तेजित, किसी एक खिड़की पर जाता है; वह इमारत के आंगन में सैनिकों को देखता है और तोप के गरजने का कारण पूछता है,उत्तर मिला -“प्रशियाओं ने वर्दुन को कब्ज़ा कर लिया है”।यह एक झूठ था। वर्दुन कुछ दिनों के बाद ध्वस्त हुआ था।अब हर कोई जानता है कि तोप की गर्जना का अलार्मउस दिन हुए खूनी नरसंहार का संकेत था। कातिलों को तीसरे अलार्म बजने पर हत्या शुरू करने का आदेश मिला था”।
धन्यघोषणा की डिक्री (आज्ञप्ति) बताती है कि उन्हें घर के अंदर मार दिया गया था, या खिड़की से बाहर सड़क पर फेंक दिया गया था, जहाँ बहुत ही क्रूर महिलाएं पुरोहितों को लाठी से जमकर पीटती थीं;जब इससे भी संतुष्ट नहीं होती थीं, वे ढुलाई की गाड़ी पर चढ़ जाती थीं, जहां शवों को रखा गया था, वे उन्हें रौंदती थीं, उन्हें टुकड़ों में काटती थीं और कटे अंगों को राहगीरों को दिखाते हुए गर्व से “राष्ट्र को लम्बी आयु” चिल्लागती थीं।
इइन दो फादर्स के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है। फादर क्लाबउदियुस बुशो का जन्म 13 जुलाई 1720 को यूस्तस तथा एलिजबेथ लेजे से शाम्पाञँ के त्रोईए स्थाान में हुआ। उन्होंिने 10 अक्तूबर 1740 को सेंट चार्ल्स के उसी समुदाय में नवशिष्य के रूप में प्रवेश किया और 16 अक्तूबर 1741 मन्नत लिया। 1759 में वे नोवाईएसेमिनरी के रेक्टर बने और फिर सेंट चार्ल्स वापस चले आए, जहाँ कई बार रेक्टर चुने गए, जिनमें से अंतिम 1789 से 1792 तक है।
फादर यूस्तस फेलिक्स का जन्म 24 अप्रैल 1736 को त्रोईए में ही हुआ। उन्होंने 20 मई 1757 को पेरिस का नवशिष्यालय में प्रवेश किया। वित्री-ल-फ्रांस्वा , शोमोंत-एन-वासीईंजैसे विभिन्न समुदायों में रहने के बाद, प्रोक्यूरेटर के रूप में सेंट चार्ल्स हाउस में वापस आ गए, जहाँ 1785 में कैदी बनाए जाने तक अपने पद पर रहे। उन्होंंने 1786 और 1789 के प्रोविंसियल चैप्टर्स में एक चयनित सदस्यके रूप में भाग लिया। अंतिम चैप्टर में प्रोविंस के सलाहकार चुने गए और 11 अक्तूबर 1791 को अंतिम सलाहकार के रूप में पेरिस में अंतिम संकल्पों पर हस्ताक्षर किए। दोनों पुरोहितों के अनुकरणीय जीवन को याद किया जाता है, जिन्होंने अपने सहधर्मबन्धुजओं के हित में पुण्य जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। उनमें नम्रता और परोपकार के दो गुण झलकते थे जो किसी भी शिष्य का निर्माण करता हैऔर जहाँ कहीं भी आवश्यकता आ पड़ने पर उसे आध्यात्मिक और भौतिक सहायता करने में सक्षम बनाता है।
जिन-जिन स्थानों पर नरसंहार हुए, वे शीघ्र ही तीर्थस्थल बन गए थे, जहाँ बहुत से लोग बलित पुरोहितों के सम्मान में प्रार्थना किया करते थे। 17अक्टूबर 1926 को फ्रांसीसी क्रांति के दौरान 189 शहीदों के साथ, क्लाउदियुस बुशो और यूस्तस फेलिक्स को भी धन्य घोषित किया गया। पूजन विधि में 2 सितम्बर को इनके नाम पर पर्व दिवस घोषित की गई है।
ईश-सेवक फादर जोसेफ राउल्क्स और फादर सेबास्टियन ड्यूबारी
जब 1789 में फ्रांसीसी क्रांति शुरू हुई, फादर रऊ ने “सिविल कॉन्स्टिच्यूशन ऑफ़ क्लर्जी” के शपथपत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और सितंबर 1792 के नरसंहार में मारे जाने के डर से छिप गया। उसने अपना नाम बदलकर कोई व्यवसाय अपना लिया, और दिन के उजाले में पुरोहिताई का कार्य करने से परहेज किया। इसके बावजूद वह अपने आरोपक द्वारा बिछाए जाल में फँस गया और वह पहचान लिया गया। आरोपक ने ईशसेवक से धर्म और उद्धारकर्ता ख्रीस्त के खिलाफ ईशनिंदा के संदर्भ में एक प्रश्न पूछा, जिसका फादर जोसेफ ने जोशपूर्ण रूप से उत्तर दिया और वह अपने को एक पुरोहित घोषित किया। उसे शपथ लेने से इनकार करने और उसके कब्जे में शपथ लेने वाले पादरियों का मजाक उड़ाने वाली “भक्ति के अनुरूप बनाई गई समता का शपथ” नामक पुस्तक पाए जाने के आरोप में सेंट लाज़ारो के जेल में बंद कर दिया गया। जेल में उसने पाठ, धर्मनिष्ठा के नैतिक अभ्यास तथा पहर के अनुसार निर्धारित प्रार्थनाओं के साथ एक धार्मिक समुदाय का जीवन व्यतीत किया, उसने अपने साथियों को मौत की तैयारी की आवश्यकता के बारे में बताया। जब उसे अदालत में पेश किया गया, तो उसने स्वर्ग को धन्यवाद दिया कि उसे अपने ईश्वर के लिए मृत्यु मिल रही है। 25 जुलाई 1794 को मौत की सजा सुनाई गई और उसी दिन गिलोटिन कर्तन-यंत्र से सर काट दिया गया। उसने अपने साथियों को पापक्षमा देने के लिए सबसे अंत में मारे जाने को कहा, इस प्रकार अपने जीवन के अंतिम क्षणों में, दण्डितों को प्रोत्साहित करने तथा धैर्य देने का पुरोहिताई कार्यों को फिर से शुरू करने में सक्षम रहा। एक ही दल में 32 वर्षीय प्रसिद्ध कवि एन्द्रिउ शेनिए को भी गिलोटिन का मृत्युदण्ड दिया गया। फादर रऊ का जन्म 17 अगस्त 1737 को आवियों और तेरास्कों के बीच ग्रावेसों में हुआ था। उसने सोलह वर्ष की आयु में क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स धर्मसंघ में प्रवेश किया और 1789 में आवियों प्रोविंस के लिए सहायक जनरल बने। उसे एक प्रतिष्ठित उपदेशक के रूप में प्रसिद्धी मिली थी। अन्य धर्मियों के एक बड़े समूह के साथ, उसकी भी धन्य-घोषणा की प्रक्रिया पेरिस में पूरी हुई। अब कोन्ग्रेगेशन फॉर द कॉजेज़ ऑफ़ सेंट्स द्वारा धन्य-घोषणा का इंतजार किया जा रहा है।
1794 में, 800 से अधिक पुरोहित और धर्मसमाजी दो पुराने पानी जहाजों पर लाए गए थे। ये जहाज ऐक्स द्वीप के सामने, शारंत नदी के मुहाने पर लंगर डाले पड़े थे। इनमें फादर सेबास्टियन ड्यूबारी भी थे जिन्हें समुद्री निर्वासन की सजा सुनाई गई थी। उन सभी ने नारकीय जीवन झेला और पांच महीने की अमानवीय कैद के बाद 547 मौतें हुईं।
तीर्थयात्रियों ने मादाम द्वीप के तट पर, शारंत नदी के मुहाने में, उस जगह पर पत्थर के क्रूस गाड़ दिए हैं, जहाँ कई शहीद दफन हैं, और जो प्रतीकात्मक रूप से उनकी कब्रों को संकेत करते हैं।
फादर सेबास्टियन ड्यूबारी की शहादत 31 वर्ष की उम्र में 25 अगस्त 1794 को हुई: वे धन्यघोषण के इन्तजार में हैं।