इटली से भारत की ओर

भारत में क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स की उपस्थिति का श्रेय तत्कालीन प्रोविंशियल सुपीरियर फादर लुचानो मस्करीन को जाता है जिन्होंने, द्वितीय वैटिकन विश्व कौंसिल द्वारा सभी संस्थाओं को व्यक्तिगत रूप से कलीसिया के मिशन की जिम्मेवारी लेने के आमंत्रण पर, पिछली शताब्दी के 90 के दशक के अंत में भारत और बुरुंडी के कुछ धर्मप्रान्तों के संपर्क में आकर पहल की।
अन्य संस्थाओं के साथ संपर्क करने, भारत में दशकों से कार्यरत सलेसियन फादर गुइदो कोलुस्सी की मदद पाने और आर्चबिशप महामान्यवर तेलेस्फोर पी. टोप्पो द्वारा स्वागत किए जाने के बाद फादर लुचानो रांची महाधर्मप्रान्त में क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन समुदाय खोलने की नींव रखी।
9 जुलाई 1997 को फादर लुचानो मस्करीन के मार्गदर्शन में इटैलियन प्रोविंशियल चैप्टर ने मिशन आद जेंतेस पर एक “प्रस्ताव” को मंजूरी दी, जिसमें लिखा है: “चैप्टर की राय है कि अंतिम जनरल चैप्टर द्वारा चाही गई और समर्थित की गई मिशनरी पहल सुपीरियर जनरल के व्यक्तिगत नेतृत्व में जारी रहना चाहिए और 2000 से पहले एक समुदाय की स्थापना नहीं किए जाने की परिस्थिति में जनरल चैप्टर प्रोविंशियल प्रशासन को तीन साल की अवधि के लिए निम्नलिखित सामान्य निर्देश सौंपता है: रांची (भारत) की कुरिया के सहयोग से … प्रारम्भ से ही “डॉक्ट्रिन लोकधर्मियों” को सम्मिलित करते हुए रांची में कार्य के लिए संरचनाओं की संभावित शुरुआत करने के लिए जमीन खरीदने की सम्भावना की खोज जारी रखे; कैंडिडेट्स इंचार्ज, और विशेषकर भारतीयों की आध्यात्मिक, बौद्धिक और प्रेरितिक तैयारी तेज की जाए, यहाँ तक कि वेरोना का सी.यू.एम. (मिशनरी फोर्मेशन के लिए एकात्मक केंद्र) द्वारा आयोजित वार्षिक बैठकों में भाग लें, और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन करें; भावी नई बुलाहट के फोर्मेशन के लिए जेसुइट फादर्स या अन्य धर्मसंघ के सहयोग से भारत में ही उनका फोर्मेशन आगे बढ़ाना चाहिए, हालांकि इटली में भी उनकी संभावित उपस्थिति को इनकार नहीं किया जा रहा है”।
इस प्रकार नवंबर 1999 में नव अभिषिक्त फादर पाओलो और प्रथम भारतीय डॉक्ट्रिनेयर्स, विनय गुड़िया और ग्रेगोरी जोजो की उपस्थिति के साथ रांची में पहले समुदाय की स्थापना होती है।
फादर अरुण कुमार एक्का के जुड़ जाने के बाद, कुछ वर्षों के भीतर डॉक्ट्रिन फादर्स ने सेमिनरियंस के प्रशिक्षण की देखभाल करने, डायसिजन कैटेकेटिकल ऑफिस में भाग लेने के अलावा, सबसे पहले शहर का गरीब इलाका फिर रांची से 25 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र में असहाय और बहिष्कृत लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कई पहल की शुरुआत की गई। इस कार्य में लोकधर्मियों का सहयोग सराहनीय रहा है, परन्तु यात्रा और जड़ोम जैसे एसोसिएशन मूलभूत है।

रांची और बयांगडीह (जड़ेया) में सक्रिय परियोजनाएँ

स्टेफनो और गाएतानो लिटिल स्कूल का जन्म रांची में एक “छोटे” स्कूल के रूप में हुआ है जिसके बच्चे शुरुआती वर्षों में पढाई छोड़ चुके थे या फिर वैसे बच्चे जिन्हें परिवार की आर्थिक परिस्थितियों के कारण पढाई करने का अवसर नहीं मिलता है। बच्चों को पहली साक्षरता दिलाने के बाद, इन्हें शहर के सबसे योग्य स्कूलों में दाखिला दिलाया जाता है, अध्ययन में इनकी देखरेख की जाती है, स्कूल के खर्चों का वहन किया जाता है और दैनिक गर्म भोजन प्रदान किया जाता है।
चेसार सिलाई सेंटर एक सिलाई और कढ़ाई का स्कूल है जिसका उद्देश्‍य गरीब बेरोजगार महिलाओं को पेशेवर बनाना है। इसके उत्पादों को भारत और इटली में यात्रा एसोसिएशन और जोहार को-ऑपरेटिव के सहयोग से बेचा जाता है।
कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र रोजगार की तैयारी में युवाओं को बुनियादी कौशल के साथ कंप्यूटर सीखने का अवसर प्रदान करता है।
मोर्गेन्ट्स लाइब्रेरी युवाओं के लिए एक पुस्तकालय सह अध्ययन कक्ष है जो विश्वविद्यालय की परीक्षाओं और प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए अध्ययन करने की निरंतर सेवा प्रदान करता है।
यात्रा डिस्पेंसरी एक लघु चिकित्सा केंद्र है जिसमें एक नर्स की उपस्थिति सुनिश्चित की गई है और सप्ताह में दो बार एक डॉक्टर की भी। यहाँ जरूरतमंद व्यक्ति स्वतंत्र रूप से सेवा ले सकते हैं। दवा और इलाज निःशुल्क है।
नौकरी प्रशिक्षण कोर्सेस मुख्यतः युवाओं को नौकरी की प्रतियोगिताओं में सफल लेने के लिए तैयार करने का एक प्रशिक्षण केन्‍द्र है।

बयांगडीह (जड़ेया) का नवा मस्कल स्कूल एक किंडरगार्टन, प्राथमिक और उच्च विद्यालय का स्कूल है, जहां लगभग पचास गांवों के बच्चे पढने आते हैं जिनके पास शिक्षा पाने के कम साधन हैं। नवा मस्कल स्कूल में तीन भाषाओँ (मुंडारी, हिंदी, अंग्रेजी) में अध्यापन करने का झारखंड में पहला प्रयास है, ताकि सहस्राब्दी से चली आ रही मुंडा संस्कृति को अलग-थलग किये बिना इस जनजाति के ज्‍यादातर बच्चों को विभिन्न भारतीय संस्कृतियों के बीच इसे समाकलित किया जा सके। यह स्कूल, पर्यावरण और आर्थिक संपोषण के मद्देनजर, छात्रों और उनके परिवारों को लघु उद्यमिता के उदाहरण देने की कोशिश भी करता है। जड़ोम एसोसिएशन युवाओं के लिए समाकलन शिविर का आयोजन करते हुए स्कूल के विकास में निकट से सहयोग करता है। यहां भी, यात्रा डिस्पेंसरी एक नर्स की निरंतर उपस्थिति और सप्ताह में एक बार एक डॉक्टर की उपस्थिति के साथ लघु चिकित्सा केंद्र के रूप में आसपास के गांवों के जरूरतमंद लोगों को स्वतंत्र रूप से सेवा देता है। दवा और इलाज निःशुल्क है। इसके अलावा, एक छोटी स्वास्थ्य टीम आसपास के गाँवों में प्रतिदिन बारी-बारी से दौरा करते हुए परामर्श और दवाइयाँ पहुंचाती है और इस प्रकार यह टीम लोगों तक डिस्पेंसरी की सेवा मुहैया करती है।

तस्वीरों में भारतीय अनुभव का वर्णन

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