संस्थापक की आध्यात्मिकता
चेसार दे बुस, अपने अनुभव से शुरूआत करते हुए पांच स्तंभ की बात करते हैं, जिनपर प्रभु के साथ अपना रिश्ता स्थापित किया जा सकता है: धर्मग्रन्थ के प्रति प्रेम, यूखारिस्तीय आराधना, माँ मरियम के प्रति श्रद्धा, स्वर्गदूतों और संतों को आह्वान और आध्यात्मिक साहचर्य।
धर्मग्रन्थ
चेसार पवित्र ग्रंथ से पोषित हुए और इसे मनन-चिन्तन और ध्यान का प्रयोजन बनाया। उनके सभी लेखों में हमें बाइबिल के कई उद्धरण मिलते हैं। उनके लिए “वचन को सुनने” का अर्थ है इसे समझना, इसे प्यार करना, इस बात पर विश्वास करना कि यह क्या संदेश दे रहा है और इसका अनुपालन करना। इसमें हम अपनी पार्थिव तीर्थयात्रा जी सकने की शक्ति और साहस पाते हैं। ईश्वर का वचन सबसे पहले उस व्यक्ति से सवाल करता है जो इसका संदेश सुनाता है, ताकि वह भी अपने आध्यात्मिक विकास के लिए इससे फल पा सके। पोप पौलुस षष्ठम् द्वारा जारी धन्यघोषण का संक्षिप्त नोट कहता है: “ईशवचन का प्रेरितिक कार्य, अर्थात् जिससे समूचा ईसाई संस्थान स्वस्थ और पवित्र तरीके से पोषित होता है, पवित्र शास्त्र के साथ आगे बढ़ता है (देई वेरबुम-ईशवचन 24)। द्वितीय वैटिकन कौंसिल का यह अभिकथन प्रशंसनीय ढंग से समझाता है कि ईश-सेवक और क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स धर्मसंघ के संस्थापक, चेसार दे बुस, का उत्साह और प्रेरितिक विधि पवित्र बाइबिल से मिलता दैनिक भोजन के रूप में मन को आहार प्रदान करती है”।
यूखारिस्तीय आराधना
चेसार परम संस्कार के प्रति महान भक्ति बनाए रखा। वे अभिपुष्ट करते हैं कि अपनी सबसे प्रिय चीजों का नुकसान ही सही लेकिन एक बार भी पवित्र समारोह के प्रति नहीं चूकेंगे। फादर चेसार यूखारिस्त के प्रति अपना प्रेम आराधना में भी प्रकट करते हैं। वे अपने पुरोहिताई कार्य की शुरुआती क्षणों में लगभग दो साल के लिए कावाइयों की एक पहाड़ी पर अवस्थित संत जेम्स आश्रम की शरण में एकांतवासी हो गए। यहाँ, वे स्वयं अपने हाथों से अपने कमरे में एक छोटी सी खिड़की खोलते हैं ताकि कक्ष में रहते हुए भी परमप्रसाद प्रकोश में उधर रखे पवित्र संस्कार की आराधना कर सके।
माँ मरियम के प्रति श्रद्धा
चेसार अपनी आत्मकथा में कहते हैं कि उसे प्रभु के द्वारा किशोरावस्था से ही, विशेषकर, निष्कलंक कुंवारी के प्रति भक्ति प्राप्त हुई है। चेसार दे बुस के लेखों में माँ मरियम दया की माता के रूप में दिखती हैं जैसे कि हम पार्थिव तीर्थयात्री ईश्वर से बारंबार क्षमा के जरूरतमंद है और वह हमारी मध्यस्थ बनती हैं, ठीक उसी माँ की तरह, जिसने क्रूस के नीचे रहकर, अपने प्यारे पुत्र के दु:ख-भोग में शामिल होकर किसी भी शहीद से अधिक कष्ट झेला हो। माँ मरियम के प्रति उनकी भक्ति विशेष रूप से रोजरी माला का जाप में दिखता है।
स्वर्गदूतों और संतों को आह्वान
चेसार स्वर्गदूतों और संतों के प्रति भी बड़ी श्रद्धा रखते थे। वे दिन का प्रत्येक घंटा को किसी एक संत के संरक्षण में सौंपना चाहते थे तथा उसके नाम की जप-विनती करते थे। चेसार के लिए एक धर्मशिक्षक होना और ईश्वर के वचन का उद्घोषक होना प्रकाश का एक दूत होना है। ख्रीस्तीय धर्मसिद्धांत वह प्रकाश है जो सभी स्त्री और पुरुष को आलोकित करता है तथा उन्हें आनंद, शांति और आशा प्रदान करता है। धर्मसिद्धांत की उद्घोषणा करते हुए, धर्मशिक्षक इस प्रकाश के संदेशवाहक बन जाते हैं, जैसे कि वचन और जीवन के साक्ष्य से यह फैलता है। उन्होंने अपने आध्यात्मिक वसीयतनामा में किसी एक संत को मित्र बनाने का सलाह दिया है: “सभी संतों में से किन्हीं एक का चुनाव करें, उनके आदर्श पर चलें और अक्सर उनकी जीवनी पढ़ें। प्रत्येक दिन उनसे प्रार्थना करें ताकि वे आप पर अपनी आत्मा और पवित्रता का संचार कर सकें। आप उनका एक श्रद्धालु बनने की कोशिश करें और साहस के साथ उनके पदचिन्हों पर चलें ताकि आप भी उनकी तरह स्वर्ग जाने की इच्छा रख सकें”।
आध्यात्मिक साहचर्य
फादर चेसार ने ख्रीस्तानुकरण के मार्ग पर स्वयं को अन्य लोगों के द्वारा भी मार्गदर्शन के लिए छोड़ दिया, जिनके समक्ष उन्होंने अपनी भावनाओं, कठिनाईयों और खुशियों को प्रकट किया। उनके प्रथम दो आध्यात्मिक निर्देशक दो लोकधर्मी हुए: एक सरल और निरक्षर महिला, अन्तोनिएत्ता रेवाइयाद और दूसरा, कावाइयों कथीड्रल के सेक्रिस्टन लुईस गुयोत। बाद में, वे जेसुइट फादर पेके के पास भेजे गए, जिनके साथ उन्होंने आध्यात्मिक साधना पूरी की। जेसुइट पुरोहित ने दुबारा आरम्भ किए अध्ययन को पूरा करने में मदद की तथा वे स्वयं इस प्रकार पढ़ाते थे: चेसार प्रात:कालीन मनन-चिन्तन खत्म कर लेने के बाद फ्रेंच में उन भावनाओं, प्रेरणाओं और आंतरिक रोशनी को लिख लेते थे जिन्हें ईश्वर प्रेरित करते थे; फ्रेंच में लिखी टिप्पणियों को लैटिन में अनुवाद कर अपने पापस्वीकार मोचक को सौंपते थे। इस प्रकार उन्हें दो परिणाम प्राप्त होता था: एक तो रचना में त्रुटियों का शुद्धिकरण करना और आध्यात्मिक जीवन में हुई प्रगति को जानना।
चेसार दे बुस, एक अग्रवर्ती धर्मशिक्षक
“छोटों” (सुसमाचारीय दृष्टिकोण से) के पक्ष में चेसार दे बुस की धर्मशिक्षा की प्रतिबद्धता एक नई शैक्षणिक विधि के रूप में अंकित हो गई। फलत: इस पद्धति से “एक साथ कैटेकिज्म कर पाने” के इरादे से आत्मा की एकता के साथ धीरे-धीरे पुरोहितगण और लोकधर्मी शामिल होते गए।
उस समय के लिए उनकी नवीन पद्धति और तैयार किए गए साधनों ने धर्मशिक्षा पढ़ाने का तरीका को अधिक आकर्षक और समझने में काफी आसान बना दिया। वे सरल और प्रभावी साधनों का उपयोग करते थे, जैसे कि खुद से चित्रित किए गए सुसमाचार के दृश्यों की तालिकाएँ, ऑडियो-विजुअल का प्रयोग, गीत और कविताएँ, इत्यादि।
वे सरल, तत्काल और प्रचलित भाषा के साथ ठोस परिस्थितियों और विचारों पर लागू करते हुए ईश्वर के वचन का भरपूर प्रयोग करते थे। वे धर्मशिक्षा के माध्यम से अपने श्रोताओं को निष्कपट मन-परिवर्तन के द्वारा न केवल शब्दों से बल्कि व्यवहार के माध्यम से येसु तक ले जाते हुए “अच्छे ख्रीस्तीय” बनने के लिए प्रेरित करते थे।
चेसार यह जानते हुए भी कि ट्रेंट कौंसिल द्वारा रचित “पल्ली पुरोहितों की धर्मशिक्षा” केवल पुरोहितों के लिए सुलभ साधन थी, उन्होंने इसे विश्वासियों के अनुकूल बनाते हुए प्रयोग किया:
- इसे ध्यान से अध्ययन किया कि कैसे “इसकी प्रभावशीलता को शून्य किए बिना लोगों के सामने समझने लायक बनाया जा सकता है” क्योंकि वे गहराई से यकीन करते थे कि धर्मशिक्षा प्राप्तकर्ताओं के जीवन के लिए ही है।
- वे ईश्वर के वचन और उसके प्रेम के आलोक में, जीवन के अस्तित्व को एक सही दिशानिर्देश और आकार देने के उद्देश्य से मंथन करने में सहायता प्रदान करने के लिए दैनिक “घटनाओं” के संकेतों को लेते थे,
- इसे क्रमिक तरीके से ख्रीस्तीय धर्मसिद्धांत की अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने दो स्तंभों के ऊपर एक मॉडल की कल्पना की:
- लघु धर्मसिद्धांत, यह उन लोगों के लिए था जो विश्वास की सच्चाइयों से दूर होते थे , जैसे बच्चे और निरक्षर। इन्हें क्रूस का चिन्ह बनाना, दस नियम और सात संस्कार की जानकारी देना, इत्यादि को आपसी बातचीत और रटकर याद करने की विधि द्वारा प्रार्थना करना सिखलाया जाता था।
- वृहत् धर्मसिद्धांत, इसे रविवार और समारोही दिनों में उपदेश-मंच से दिया जाता था। इसके अन्तर्गत प्रेरितों का धर्मसार, हे पिता हमारे, दस आज्ञा, कलीसिया के छ: नियम, और संस्कारों की एक व्यापक, परन्तु बहुत ही सरल तरीके से व्याख्या दी जाती थी।
- डॉक्ट्रिनरी परंपरा ने बाद में एकमध्यम धर्मसिद्धांत को जोड़ा, जो धन्य संस्थापक के द्वारा कार्यान्वित दोनों धर्मसिद्धान्तों के बीच का प्रारूप था। इसे ठोस भाषा और जुड़ी वास्तविकता के साथ किसी लंबे एकलाप से बचते हुए पवित्र ग्रन्थ और कलीसिया के धर्माचार्यों के लेखों के प्रचुर संदर्भ के साथ प्रस्तुत किया जाता था। फिर मौजूद लोगों की भागीदारी को संयुक्त करने के लिए प्रश्नोत्तरी की विधि का उपयोग कर, किसी ठोस उदाहरण के द्वारा, बताए गए सभी विषय-वस्तु का एक सारांश पेश किया जाता था।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि उपर्युक्त धर्मशिक्षा का प्रारूप एक “क्लासिक” पाठ्यक्रम के समान था, जैसा कि ट्रेंट परिषद द्वारा भी सोचा गया था, परन्तु चेसार दे बुस की मौलिकता व्याख्या को बातचीत, स्वतंत्र सवाल-जवाब और यहां तक कि झांकी के माध्यम से जीवंत और आकर्षक बनाना था। वे विश्वास में प्रतिबद्धता और रुचि जगाने के लिए पुस्तक, स्वनिर्मित रोजरी-माला, छोटे-छोटे क्रूस और तस्वीर बाँटते थे। यद्यपि निकटवर्ती पादरियों के द्वारा उन्हें आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ा था, तथापि चेसार ने समर्पण के साथ धर्मशिक्षा की प्रतिबद्धता को पूरा किया। आलोचकों को यह कोई “बच्चों वाली कामचलाऊ कैटेकिज्म” लग रहा था परन्तु चेसार प्रामाणिक तौर पर वचन की रोटी से पोषित ख्रीस्तीय समुदाय के “निर्माण” में सहयोग कर रहे थे, जिसे कलीसिया सभी पीढ़ियों के लिए तोड़ती है।
27 अप्रैल 1975 को फादर चेसार के धन्यघोषण के दौरान पौलुस षष्ठम ने बिलकुल सही सारांश करते हुए कहा है कि यह आवश्यक है कि:
“एक ऐसी धर्मशिक्षा को बढ़ावा दें जो सुलभ, बोधगम्य और जीवन से जुड़ी हो” तथा “बच्चे हों या बालिग, ईश्वर को धीरे-धीरे तलाशने में उनका साथ दें”।
फादर चेसार और धर्मशिक्षा देने की उनकी विधि
फादर चेसार दे बुस ख्रीस्तीय धर्मसिद्धान्त का अभ्यास को दो चक्रों में बताते थे: लघु धर्मसिद्धांत, यह उन लोगों के लिए होता था जो बिलकुल अनभिज्ञ होते थे, विशेषकर बच्चे और निरक्षर, जो क्रूस का चिन्ह बनाना, दस नियम और सात संस्कार इत्यादि को आपसी बातचीत और रटकर याद करने की विधि से प्रार्थना सिखते थे। वृहत् धर्मसिद्धांत, जिसके तहत भाषा का मूलभाव बनाए रखते हुए, रविवार और समारोही दिनों में प्रेरितों का धर्मसार, हे पिता हमारे, दस आज्ञा, कलीसिया के छ: नियम, और संस्कारों की एक व्यापक और बहुत ही सरल व्याख्या उपदेश-मंच से दिया जाता था।
नि:संदेह यह धर्मशिक्षा का एक “क्लासिक” पाठ्यक्रम था, जैसा कि ट्रेंट परिषद द्वारा भी परिकल्पित था, परन्तु फादर चेसार व्याख्या को बातचीत, स्वतंत्र सवाल-जवाब अथवा झांकी के माध्यम से जीवंत और आकर्षक बनाते थे।
फादर चेसार की रेखा से चली आ रही डॉक्ट्रिन परंपरा जीवंत, “आविष्कारशील” और तत्काल धर्मशिक्षा की खोज के लिए सबसे अलग रही है जिसने हमें इस धर्मशिक्षा को सरल शब्दों, कम कृत्रिम सूत्रों और याद रखने में सुगमता के साथ सिखलाया है। फादर दे बुस के प्रथम जीवन-वृतांत-लेखक, मर्सेल बताते हैं कि वचन सुनाने का उनका तरीका अत्यन्त सरल और सभी की पहुंच के भीतर होता था। वे परिष्कृत शब्दों को किसी खतरनाक चट्टानों के समान टालते थे, इसी प्रकार निरर्थक और जिज्ञासु प्रसंगों से भी बचते थे, हालांकि वे सुनने में काफी सुखद लगते थे। उनकी धर्मशिक्षा अच्छी तरह से संरचित, संतुलित, सुंदर और उत्साह के साथ इस तरह प्रस्तुत किया जाता था कि न केवल सरल परन्तु शिक्षित व्यक्ति भी संतुष्टि और लाभ प्राप्त करते थे। उनका इरादा अपने श्रोताओं को बुद्धिमान बनाना नहीं वरन् विश्वासी बनाना होता था। जैसा कि पौलुस षष्ठम ने अभिपुष्ट किया है, इसी तरह के प्रारूप के अनुसार पवित्र धर्मग्रंथ से ओत प्रोत उपदेश बनता है और सीखी गई संकल्पनाएँ आध्यात्मिक व्यवहार और कृत्य में परिवर्तित हो जाती हैं।
फादर चेसार और डॉक्ट्रिन फादर्स की मूल धर्मशिक्षा का अनुभव (धर्मशिक्ष्ाकों के प्रयोग के लिए) एक समृद्ध संग्रह में मिलता है, जो 4 या 5 भागों में (1666 और 1685 के पहले और तीसरे संस्करणों के अनुसार) विभाजित है, और जो “पारिवारिक शिक्षाएँ” शीर्षक के तहत संग्रहित है। उनमें संरचना और शैली के आधार पर निम्न विशेषताएँ मिलती हैं:
- प्रेरितों का धर्मसार, दस आज्ञाएँ, रविवारीय प्रार्थना, अवगुणों और संस्कारों के ख्रीस्तीय धर्मसिद्धांत का पारम्परिक विभाजन (कालक्रम में परिवर्तन के साथ);
- उनकी तार्किक प्रविष्टि के अनुसार “पाठ” अथवा प्रसंग का विभाजन, जैसे, विश्वास के परिच्छेद, ईश्वर और कलीसिया के नियम, हे पिता हमारे के प्रश्न, सात अवगुण, सात संस्कार;
- दो, तीन या चार शिक्षा-विषयक इकाइयों में एकल “पाठों” का उपविभाजन;
- अंतिम व्यावहारिक उदाहरण अथवा परिचय के साथ व्यवस्थित “पाठों” को समृद्ध करना, और सीखे गए विषयों की पुनरावृत्ति करने के इरादों से आगामी शैक्षणिक पाठ अथवा धर्मशिक्षा संबंधी बैठक का आयोजन करना;
- प्रश्नों और उत्तरों की तकनीक का अत्यंत लचीला उपयोग, धर्मसिद्धांत की पुस्तिकासे अथवा पूछताछ करने हेतु पहले से ही रटकर याद करने की बाध्यता नहीं, बल्कि पारस्परिक सहमति और जिंदादिल आत्मसात्करण;
- पवित्र ग्रन्थ और कलीसियाई धर्माचार्यों के वाक्यों तथा उदाहरणों को निरंतर जोड़ते हुए सरल, प्रचलित, उत्साही और स्नेही भाषा का प्रयोग;
- और, भक्ति और व्यावहारिक प्रतिबद्धता के बीच “सिद्धांत” का विलयन।
“पारिवारिक शिक्षा” को कैटेकेटिकल थेयोलॉजी माना जा सकता है, जिसे धर्मशिक्षकों के लिए प्रारम्भिक तथा जीवन्त थेयोलॉजी भी कहा जा सकता है जो आध्यात्मिकता से ओत प्रोत तथा शैक्षणिक और शिक्षाप्रद विचारों से समृद्ध कैटेकेटिकल पद्धति का एक अनुभवी और प्रेरणादायक पुस्तिका है।