प्रेरिताई (करिज्मा) और आध्यात्मिकता
प्रेरिताई की शुरूआत की पुष्टि प्रथम नियमों (1602) में मिलती है, जिसमें लिखा है:”सभी कोई ख्रीस्तीय धर्मसिद्धान्त और परोपकार में गहराई से आरोपित हो जाएँ; […] हमारे धर्मसंघ की परिपूर्णता की नींव इन्हीं दो गुणों पर आधारित है“। ख्रीस्तीय धर्मसिद्धांत का अभ्यास करने के मद्देनजर समुदाय में भ्रातृ जीवन, अर्थात् वचन ग्रहण करने वालों के जीवन में सरल, समझने योग्य और सहज धर्मशिक्षा के माध्यम से ईश-वचन का प्रचार करना ही धर्मसंघ की मूल प्रेरिताई है।
साथ ही, एपोस्टोलिक मिशन और सुसमाचारीय परामर्श का अनुपालन करने के मद्देनजर सामुदायिक जीवन जीना, जो ख्रीस्त और कलीसिया के साथ गहरा जुड़ाव के संकेत हैं, डॉक्ट्रिन धर्मसंघियों के धर्मसमर्पण की विशेषता का अविभाज्य तत्व है।
इसके अतिरिक्त, अपनी प्रेरिताई के प्रति रचनात्मक निष्ठा बनाए रखना धर्मसंघियों की पवित्रता और प्रेरितिक कार्य के लिए आवश्यक है। इस प्रेरिताई के पोषक तत्व ईश्वर के वचन को ग्रहण करना अर्थात इसका मनन-चिन्तन करना, प्रार्थना करना, फिर पवित्र ग्रन्थ , परंपरा और कलीसिया की प्रामाणिक शिक्षा (मैजेस्टेरियम) का ज्ञान रखना है। साथ ही, वर्तमान समय के पुरुषों और महिलाओं के दिलों से उभरने वाली सच्चाई, उनके जीवन में उठते सवालों और जरूरतों को समझना भी प्रेरिताई का एक हिस्सा है। यह सब कुछ समय के दौरान, कुछ यशस्वी सहधर्मबन्धुओं की पवित्रता तथा धर्मसिद्धांत के अनुपालन के गवाह से और कुछ मामलों में शहादत की कृपा के माध्यम से समृद्ध हुआ है।
हमारी प्रेरिताई, जिसका वाहक धर्मसंघ है, ट्रेंट विश्व परिषद के कार्य के बाद के नवीकरण के बाद जन्म हुआ है और इसकी विशिष्टता की पुष्टि द्वितीय वैटिकन विश्व परिषद की आत्मा में और कलीसिया के कई दस्तावेजों में की गई है। हमारी प्रेरिताई आज के दौर में सुसमाचार प्रचार करने तथा सटीक धर्मशिक्षा देने की ओर भी विशेष ध्यान दिलाती है।
कष्टदायक ऐतिहासिक घटनाओं से उबरने के बाद कॉन्ग्रिगेशन आज इटली, फ्रांस, ब्राजील, भारत और बुरुंडीमें कार्यरत है।
फादर चेसार के धन्यघोषण के दिन पोप पौलुस षष्ठम का भाषण (27 अप्रैल 1975)
“हम ख्रीस्तीय धर्मसिद्धांत की शिक्षा देने, अर्थात विश्वास और ईश-वचन का जीवन संचरण करने के प्रति समर्पित पुरोहितों और धर्मसंघियों की ओर अभिमुख होना चाहते हैं। हम धर्मशिक्षकों, पहला-पहला मिशनरी सुसमाचार प्रचार करने वाले शिल्पकारों, और सभी युवा स्वयंसेवकों को याद करते हैं जो, अपना बहुमूल्य समय का बलिदान करते हुए, स्वयं को सुसमाचार का संदेश सुनाने के लिए समर्पित करते हैं। आज बहुत खास तरीके से उन्हीं का पर्व है”।
“हम इस विचार की प्रशंसा करते हैं, और इस नए धन्य की और उनके कलीसियाई शिक्षण के प्रयास की प्रशंसा करते हैं, जो समुदाय की मानसिकता में धर्म के स्पष्ट और वास्तविक विज्ञान को सम्मिलित करते हैं तथा इसे प्रसारित करना चाहते हैं। यह परोपकार तथा एकता की ओर अभिमुख ईश्वर के वचन को ग्रहण करने का मौलिक और पारंपरिक तरीका है। ईश्वर का वचन विस्मयकारी और अथाह गहराई की खोज करने का मार्ग प्रशस्त करने तथा रोशन करते और पवित्र करते सद्गुणों को पहचानने के लिए प्रकाशना है। अत: यह एक जीवित, आधुनिक और वर्तमान विधि है”।(उसी दिन “रेजिना चेली” प्रार्थना के दौरान)