एंजेलो स्‍त्रूफ़ोलिनी डॉक्ट्रिनेयर और धर्मशिक्षक दक्षिण इटली में नई सदी के एक धर्माध्यक्ष

वे सिर्फ चालीस वर्षों से एकीकृत इटली के एक बिशप रहे; दक्षिण इटली बीसवीं सदी में गहरी तनाव और सामाजिक विषमताओं के बीच सामना कर रहा था। “एंजेलो स्‍त्रूफ़ोलिनी (1853-1917) – नई सदी के डॉक्ट्रिन पुरोहित, धर्मशिक्षक और बिशप” शीर्षक से सलेसियन्‍स पोंटिफिकल यूनिवर्सिटी (रोम) और थियोलॉजिकल फैकल्टी पुग्लिया (बारी) में चर्च हिस्ट्री के प्रोफेसर एंजेलो जोसेफ दिबीशेल्यिा और डॉक्ट्रीनरी प्रकाशन द्वारा पुस्‍तक प्रकाशित की गई जो पुस्‍तक दुकानों और मुख्य बुकस्टोर पर उपलब्‍ध है।

«स्‍त्रूफ़ोलिनी – जैसा कि प्रो. दिबीशेल्यिा, 1901 से 1914 तक संयुक्‍त रूप से आस्कोली सात्रियानो और चेरींयोला धर्मप्रान्‍त के तत्कालीन पुरोहित और चरवाहे के रूप में रहे उनकी छवि के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं – एक ऐसे बिशप थे जो पोप लियो XIII की कलीसियाई प्रामाणिक शिक्षा के तहत सुधार के लिए सुझाए गए कदमों के अनुसार कलीसिया ‘होने’ की नवीकृत जिम्मेदारी को चर्च में ‘बने रहने’ की प्राचीन कलीसियाई प्रतिबद्धता के साथ ‘एकजुट’ करने में सक्षम रहे थे। इस संबंध में, श्रद्धेय फादर एंतोनियो पल्लादिनो के वक्तव्य से प्रारम्भ करते हुए कहते हैं कि कैसे वे अपने धर्माध्यक्ष को ‘श्रद्धेय चेसार दे बुस तथा श्रद्धेय डॉन बोस्‍को के एक सच्चे शिष्य, पवित्र संस्कार की विचारधारा के पोप के सच्चे व्याख्याकार के रूप में’ निरूपित किया, अत: उनकी पुस्तक स्‍त्रूफ़ोलिनी की एक विषयगत जीवनी विकसित करती है। इसमें बेनेवेंतो एपिस्कोपल कॉन्फ्रेंस में उनके द्वारा किए गए कार्य, असंख्य पास्‍टोरल पत्रों के पन्‍ने, रोमानितास शैली के आधार पर पास्‍टोरल दौरा करने की सावधानियाँ तथा रेलासियो आद लिमीनाका प्रारूप तैयार करने तक की गतिविधियों की कई अभिव्यक्तियाँ समाहित हैं, साथ ही, इसमें क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स धर्मसंघ में उनके प्रभावकारी योगदानों को भी नहीं भुलाया जा सकता है»।

एक ऐतिहासिक विश्लेषण से यह रेखांकित होता है कि «स्‍त्रूफ़ोलिनी समकालीनता के कठिन विषयों से अनजान बिशप नहीं थे – जैसा कि, सोलहवीं सदी के अन्त में, आगामी संतघोषण के करीब पहुँचे धन्‍य चेसार दे बुस के द्वारा स्थापित क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स धर्मसंघ, जिसके स्‍त्रूफ़ोलिनी सर्वप्रथम महासचिव तत्‍पश्‍चात् सुपीरियर जनरल रहे थे, के वर्तमान सुपीरियर जनरल फा॰ सेर्जो ला पेंईया, डीसी, अपने प्राक्‍कथन में लिखते हैं – वे वस्तुतः एक बिशप के रूप में स्वयं को एक सुरक्षित और शांत धर्मशास्त्रीय अन्‍वेषण के भीतर सीमित नहीं किया, वरन् समाज की बुराइयों की निंदा करने की मुश्किल मिशन में, उपयुक्त मार्गों का अनुसरण करने और सामना करने के लिए रणनीतियों का अनुपालन करने के संकेत देते हुए तथा संभवतः उन कई और स्पष्ट बाधाओं को दूर करने के लिए खुद को कार्यमग्न कर दिया जो दशकों से कलीसिया और समाज के बीच का संबंध को भड़काते रहे थे।

आस्कोली सात्रियानो-चेरींयोला का एकीकृत धर्मप्रान्‍त के आसन पर आए, स्‍त्रूफ़ोलिनी के उत्तराधिकारी, मान्‍यवर लुइजी रेन्‍ना की पुस्तक की प्रस्तावना में मौजूद कुछ गहन पहलू इस प्रकार हैं: बिशप स्‍त्रूफ़ोलिनी पर अध्ययन करना, उनके गठन कार्य, एक डॉक्ट्रिन पुरोहित होने के रूप में उनकी प्रेरितिक गतिविधियाँ, और आस्‍कोली सात्रियानो-चेरींयोला धर्मप्रान्‍त में उनके प्रेरितिक कार्यों का प्रासंगिकीकरण उल्लेखनीय हैं, जिन्‍हें युगयुगीन काल परिवर्तन की प्रक्रिया के तहत समझा जाना चाहिए जो XIX और XX सदी के बीच के अंतर को अलग करता है। सूत्रों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण, हमें – जैसा कि बिशप रेन्ना का निष्कर्ष है – तब की सांस्कृतिक परिस्थिति, लियो XIII के कार्यकाल के res novae सुधार कार्य के प्रति सावधानी, पोप सारतो द्वारा पुनर्गठन के कार्य, और सेक्रिड कॉन्ग्रिगेशन ऑफ द कौंसिल की गतिविधियाँ की पूरी तस्वीर देता है जिससे ‘प्रबुद्ध और पवित्र’ एंजेलो स्‍त्रूफ़ोलिनी की क्षमता और बढ़ी है»।